बरेली शहर में हुआ उसे देखकर अपने आप कुछ लिखा ओ आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूँ "बरेली शहर" की जुबान में .....
मुझको आज रुला गए मेरे शहर के लोग,
अपनी सूरत असली दिखा गए मेरे शहर के लोग,
जिस भाईचारे की बुनियाद पर अब तक टिका था मैं,
उसकी ईंट से ईंट बजा गए मेरे शहर के लोग ,
दुश्मनों के शोले से जलने में कोई रंज न होता ,
पर मुझको आग लगा गए मेरे शहर के लोग ,
एक जरा सी बात पे क्यों कुफ्र इनको हो गया,
ये गर्म मिज़ाजी कहाँ पा गए मेरे शहर के लोग,
हमने सुना की कल कहीं ईश्वर खुदा से हार गया ,
मज़हब को मज़हब से लड़ा गए मेरे शहर के लोग,
मंदिरों और मस्जिदों ने लपटों को देखा तो कहा,
क्या इस दिन के लिए बना गए मुझे मेरे शहर के लोग ,
अब होली और ईद कुछ सहमी सहमी सी जाएगी,
कुछ ऐसा मंज़र आज बना गए मेरे शहर के लोग,
हासिल तो कुछ हुआ नहीं सिवा अपनों के गवाने का,
आज इंसानियत को खा गए मेरे शहर के लोग,
सुरमे के अलावा अब इन दंगों से जाना जाऊंगा ,
मेरी ऐसी पहचान बना गए मेरे शहर के लोग ,
इस मंज़र की खातिर मै सदियों तक कुरेदा जाऊंगा,
मुझपे एक ऐसा नासूर बना गए मेरे शहर के लोग .
कमल वर्मा "तन्हा"